Sunday, April 21, 2013

चकोर चांदनी से मुहब्बत कर बैठा

चकोर चांदनी से मुहब्बत कर बैठा

चकोर चांदनी से मुहब्बत कर बैठा
दर्द-ए-दिल अपना उसे बयां कर बैठा
जानता हूँ, तुम हो केवल अपने चाँद की
फिर भी प्रेम-दिल तुम्हारे हवाले कर बैठा।

चांदनी पिघल गई उसकी देखकर ये हालत
बोली- मैं आज़ाद हूँ, आज़ाद है मेरी चाहत
चाँद की तो सदा हूँ, रहूंगी मैं युगों-युगों तक
मेरे अंचल में है तुम्हारे लिए भी थोड़ी राहत।

चुपके से सुन रहा था चाँद उनका ये वार्तालाप
कुछ भी न बोला, और छा गई अँधेरी रात
चांदनी का मानो पूरा मिट गया अस्तित्व
चकोर मातम का करता रह गया आलाप।

उधर चकोरी भी विह्वल हुई चाँद के छिपने पर
चंचल मन संभला चकोर की सिसकियां सुनकर
छूमंतर हुआ अब उन का काल्पनिक प्यार-व्यार
क्या कमी है हममें जो हम मरते हैं चाँद-चांदनी पर।

लेखिका- उषा तनेजा

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