Saturday, January 25, 2014

गणतंत्र दिवस पर मेरी वेदना



हर रोज़ आता है मुझे सपना, आज़ादी के मतवालों का;
क्यों भुला दिया है अहसान, भारत माँ के रखवालों का?
आज़ादी दिलवाई उन्होंने, स्वराज और स्वाभिमान की,
क्यों स्वार्थ हमारा हावी हुआ, भूले महत्ता राष्ट्राभिमान की?

आत्मा चीख-चीख पुकार रही, बंद करो सब ढोंगी होंसले,
दृष्टी है तो फिर उठकर देखो, गरीबों के मन रुपी घोंसले;
त्रस्त किया है जन को तुमने, झूठ, बेईमानी, घूसखोरी से,
क्या होगा सजा कर राज-पथ, दिखावे की मधु चटकोरी से?
...उषा तनेजा 'उत्सव'

2 comments:

  1. "आत्मा चीख-चीख पुकार रही, बंद करो सब ढोंगी होंसले,
    दृष्टी है तो फिर उठकर देखो, गरीबों के मन रुपी घोंसले;"
    BAHUT SUNDAR BAATEIN LIKHI HAI AAPNE ISH RACHNA MEIN,.. SAHI MAYANO MEIN YEAH APKI AKELE KA SAPNA NAHI HAI YEAH HINDUSTAN MEIN DABE KUCHALE GARIB AUR AAM AADAMI KA BHI YEAHI SAPNA HAI,.. KAAS WO DIN KAB AAYEGA JAB YEAH SAB SACH HOGA .. SAHI MAYANO MEIN WOHI SACHCHI AZADI HOGI..

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    1. हार्दिक धन्यवाद Krishnamohan Pandey जी!

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